करमाकर ने किताब में बयां किया ओलंपिक पदक चूकने का दर्द

राइफल निशानेबाज जयदीप करमाकर ने मामूली अंतर से पदक से चूकने का दर्द अनुभव किया था और अब रियो ओलंपिक से पहले उन्होंने उन बाधाओं का खुलासा किया है जो लंदन खेलों से पहले कोच और अधिकारियों ने पैदा की थी। करमाकर ने ‘माइ ओलंपिक जर्नी’ नामक किताब (books) में बताया है कि पुरुषों के 50 मीटर राइफल प्रोन के फाइनल में पहुंचकर वह कैसा महसूस कर रहे थे और चौथे स्थान पर रहने से उन्हें कितना दुख हुआ। करमाकर के अनुसार, लंदन में मेरा दोस्त विजय कुमार पोडियम तक पहुंचा। उसने फाइनल में बेहतरीन प्रदर्शन करके लंदन खेलों में भारत का दूसरा पदक और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के 2004 के प्रदर्शन के बाद दूसरा रजत पदक जीता। विजय को पोडियम पर देखकर मुझे लगा कि मैंने कुछ गंवा दिया है। मैं बच्चे की तरह रोने लगा था। इस किताब के सह लेखक खेल पत्रकार दिग्विजय सिंह देव और अमित बोस हैं। करमाकर ने दावा किया कि ओलंपिक से पहले उन्हें भारतीय टीम के दोनों कोच सन्नी थामस ओर स्टेनिसलास लैपिडस के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, मुझे हर तरह से परेशान करने की कोशिश की गई। मुझे 2012 एशियाई चैंपियनशिप दोहा, जो कि ओलंपिक के लिये चयन समिति की बैठक से पहले आखिरी प्रतियोगिता थी, में अपने वैध स्थान के लिए भी लड़ना पड़ा था। मैंने न्यूनतम क्वालीफाईंग स्कोर (एमक्यूएस) के जरिये इस प्रतियोगिता में जगह बनाई थी जो कि निशानेबाजी के नियमों के अनुरूप था। कुछ कारणों से मैं टीम का हिस्सा नहीं था और मुझे नियमों का अनुपालन करवाने के लिये एनआरएआई तक में विरोध दर्ज करना पड़ा था। करमाकर के अनुसार जल्द ही यह कितबा आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore)पर उपलब्ध होगी। जहां से कोई भी इसे खरीद (buy books online)सकता है। 

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