हिंदी साहित्य के 10 श्रेष्ठ उपन्यास

हिंदी साहित्य के 10 श्रेष्ठ उपन्यास चुनना  बहुत ही मुश्किल है पर नीचे दी गयी किताबें किसी भी सन्दर्भ मे भारतीय साहित्य का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह सभी किताबें किसी भी ऑनलाइन बुकस्टोर (online bookstore) से खरीद सकतें है.

गोदान
लेखक : प्रेमचंद
प्रकाशन : 1936
भारतीय साहित्य में प्रेमचंद और उनकी लेखनी से कौन वाकिफ नहीं है? प्रेमचंद का ‘गोदान’ उपन्यास उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से है। हिंदी भाषा में तो ये 1936 में ही प्रकाशित हो गया था, लेकिन अंग्रेजी में इसका अनुवाद 1987 में हुआ। गोदान जिस समय लिखा गया था, उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। इस उपन्यास में उस समय के भारतीय समाज और परिवार की दशाओं को नपे-तुले शब्दों में ब्यान किया। उपन्यास वे ही उच्च कोटि के समझे जाते हैं जिनमें आदर्श तथा यथार्थ का पूर्ण सामंजस्य हो। गोदान में समान्तर रूप से चलने वाली दोनो कथाएं हैं - एक ग्राम्य कथा और दूसरी नागरिक कथा, लेकिन इन दोनो कथाओं में परस्पर सम्बद्धता तथा सन्तुलन पाया जाता है। गोदान में उन्होंने ग्राम और शहर की दो कथाओं का इतना यथार्थ रूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है। दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है।

गुनाहों के देवता

लेखक : धर्मवीर भारती
प्रकाशन : 1949
जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ तब पूरे देश में आदर्शवाद की जबर्दस्त धूम थी। आजादी के बाद के इस कालखण्ड में जो महत्वपूर्ण किताबें सामने आईं उनमें से अधिकांश में आत्मबलिदान को लेकर एक विचित्र किस्म का व्यामोह था। हर कोई कुरबान होना चाहता था, लेकिन किसी को पता नहीं था कि किस पर कुर्बान होना है। कोई अपनी कला पर कुर्बान था तो कोई अपनी प्रेमिका पर और बाकी सब किसी ना किसी मकसद को लेकर। बलिदानी होने की कामना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन दिक्कत तब होती है जब आपके सामने कोई ठोस आदर्श नहीं हो। और प्रेम में तो आदर्श वक्त के साथ बहुत तेजी से बदलते रहते हैं। जिसे अंग्रेजी में प्लेटोनिक लव कहते हैं, जिसमें दैहिक संबंध के बिना अपने प्रेम का चरम रूप दो प्रेमी दिखाना चाहते हैं। चंदर और सुधा ऐसे ही प्रेमी हैं।

आपका बंटी

लेखक: मन्नू भंडारी
प्रकाशन : 1970
आपका बंटी मन्नू भंडारी के उन बेजोड़ उपन्यासों में है जिनके बिना न बीसवीं शताब्दी के हिन्दी उपन्यास की बात की सकती है, न स्त्री-विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है। तीस वर्ष पहले (1970 में) लिखा गया यह उपन्यास हिन्दी के लोकप्रिय पुस्तकों की पहली पंक्ति में है। दर्जनों संस्करण और अनुवादों का यह सिलसिला आज भी वैसा ही है जैसा धर्मयुग में पहली बार धारावाहिक के रूप में प्रकाशन के दौरान था। बच्चे की निगाहों और घायल होती संवेदना की निगाहों से देखी गई परिवार की यह दुनिया एक भयावह दु:स्वप्न बन जाती है। कहना मुश्किल है कि यह कहानी बालक बंटी की है या मां शकुन की। सभी तो एक-दूसरे में ऐसे उलझे हैं कि त्रासदी सभी की यातना बन जाती है। बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ-बूझ के लिए चर्चित, प्रशंसित इस उपन्यास का हर पृष्ठ ही मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक है। हिन्दी उपन्यास की एक मूल्यवान उपलब्धि के रूप में आपका बंटी एक कालजयी उपन्यास है।


रागदरबारी

लेखक : श्रीलाल शुक्ला
प्रकाशन : 1968
राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। राग दरबारी की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गांव शिवपालगंज की है जहां की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल फूल रही हैं। ये गांव-देहात के ऊपर लिखा व्यंग्यात्मक शैली में कटाक्ष है।  रागदरबारी विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है, इसका लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला।

पिंजर

लेखक : अमृता प्रीतम
प्रकाशन : 1950
इस किताब की पूरी भूमिका विभाजन पर टिकी है, वैसे ये मुख्तय पंजाबी भाषा में लिखी गई थी, लेकिन खुशवंत सिंह ने इसका अनुवाद हिंदी में किया। ये उपन्यास एक हिंदू लड़की पूरो और मुस्लिम लड़के राशिद की प्रेम कहानी है। पिंजर की कथा-नायिका पूरो इस कसौटी पर बिल्कुल खरी उतरती है। वह स्वयं शोषित है किंतु न केवल स्वयं को संभालती है बल्कि अपने जैसे कई शोषितों का सहारा भी बनती है, उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है। यह वह उपन्यास है, जो दुनिया की आठ भाषाओं में प्रकाशित हुआ है और जिसकी कहानी भारत के विभाजन की उस व्यथा को लिए हुए है, जो इतिहास की वेदना भी है और चेतना भी।


आषाढ़ का एक दिन
लेखक : मोहन राकेश
प्रकाशन : 1958
आषाढ़ का एक दिन की प्रत्यक्ष विषयवस्तु कवि कालिदास के जीवन से संबंधित है। किन्तु मूलत: वह उसके प्रसिद्ध होने के पहले की प्रेयसी का नाटक है- एक सीधी-सादी समर्पित लड़की की नियति का चित्र, जो एक कवि से प्रेम ही नहीं करती, उसे महान होते भी देखना चाहती है। महान वह अवश्य बनता है, पर इसका मूल्य मल्लिका अपना सर्वस्व देकर चुकाती है। इसके साथ ही समकालीन अनुभव और भी कई आयाम इस नाटक में हैं, जो उसे एकाधिक स्तर पर सार्थक और रोचक बनाते हैं। उसका नाटकीय संघर्ष कला और प्रेम, सर्जनशील व्यक्ति और परिवेश, भावना और कर्म, कलाकार और राज्य, आदि कई स्तरों को छूता है। इस नाटक को समाज की परिस्थितियों व वर्तमान हालातों से जोड़कर देखा जा सकता है। इसको पढ़ने पर ऐसा लगता है जैसे कहानी आज के जमाने में ही लिखी गई हो। समाज में लोग प्रेम को किस नजर से देखते हैं, इसके लिए इससे अच्छी कोई पुस्तक हो नहीं सकती। मोहन राकेश की इस अनमोल कृति का प्रकाशन सन 1958 में हुआ।

पाकिस्तान मेल
लेखक : खुशवंत सिंह
प्रकाशन : 1956
भारत-विभाजन की त्रासदी पर केंद्रित पाकिस्तान मेल (ट्रेन टू पाकिस्तान) सुप्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का अत्यंत मूल्यवान उपन्यास है। सन 1956 में प्रकाशित और उसी साल अमेरिका के ग्रोव प्रेस एवार्ड से पुरस्कृत यह उपन्यास मूलत: उस अटूट लेखकीय विश्वास का नतीजा है, जिसके अनुसार अंतत: मनुष्यता ही अपने बलिदानों में जीवित रहती है। घटनाक्रम की दृष्टि से देखें तो 1947 का भयावह पंजाब। चारों ओर हजारों-हजार बेघर-बार भटकते लोगों का चीत्कार। तन-मन पर होनेवाले बेहिसाब बलात्कार और सामूहिक हत्याएं। लेकिन मजहबी वहशत का वह तूफान मनो-माजरा नामक एक गांव को देर तक नहीं छू पाया और जब छुआ भी तो उसके विनाशकारी परिणाम को इमामबख्श की बेटी के प्रति जग्गा के बलिदानी प्रेम ने उलट दिया। संक्षेप में कहें तो अंग्रेजी में लिखा गया खुशवंत सिंह का यह उपन्यास भारत-विभाजन को एक गहरे मानवीय संकट के रूप में चित्रित करता है।


लज्जा
लेखक : तसलीम नसरीन
प्रकाशन : 1993
लज्जा बांग्लादेश की बहुचर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन का पांचवां उपन्यास है। इसका प्रकाशन 1993 में हुआ। इस उपन्यास ने न केवल बांग्लादेश में हलचल मचा दी है, बल्कि भारत में भी व्यापक उत्ताप की सृष्टि की है। यही वह उत्तेजक कृति है, जिसके लिए लेखिका को बांग्लादेश की कट्टरवादी साम्प्रदायिक ताकतों से सजा-ए-मौत की घोषणा की है। यह उपन्यास बहुत ही शक्तिशाली ढंग से बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करता है और उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण करता है जो एक लंबे अरसे से बांग्लादेशी हिन्दुओं की नियति बन चुका है। हमारे देश की हिन्दूवादी शक्तियों ने लज्जा को मुस्लिम आक्रमकता के प्रमाण के रूप में पेश करना चाहा है, लेकिन वस्तुत: लज्जा दुधारी तलवार है। वस्तुत: यह पुस्तक साम्प्रदायिकता मात्र के विरुद्ध है और यही उसकी खूबसूरती है।


तमस
लेखक : भीष्म साहनी
प्रकाशन  : 1974
भारत में विभाजन से सात दिन पहले की एक काल्पनिक-सी घटना जो बिल्कुल सच्ची प्रतीत होती है। तमस की कथा परिधि में अप्रैल 1947 के समय में पंजाब के जिले को परिवेश के रूप में लिया गया है। तमस कुल पांच दिनों की कहानी को लेकर बुना गया उपन्यास है। परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षों की कथा हो जाती है। यों संपूर्ण कथावस्तु दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में कुल तेरह प्रकरण हैं। दूसरा खंड गांव पर केंद्रित है। तमस उपन्यास का रचनात्मक संगठन कलात्मक संधान की दृष्टि से प्रशंसनीय है। इसमें प्रयुक्त संवाद और नाटकीय तत्व प्रभावकारी हैं। वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे। तमस को 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इस पर 1986 में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फिल्म भी बनाई थी।

कितने पाकिस्तान
लेखक : कमलेश्वर
प्रकाशन : 2000
कमलेश्वर का यह उपन्यास मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है। इस उम्मीद के साथ कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद दूसरे पाकिस्तान बनाने की लहू से लथपथ यह परम्परा अब खत्म हो। यह उपन्यास कमलेश्वर के मन के भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता है। हिंदी के तमाम उपन्यासकारों की श्रेणी में युगचेता कथाकार कमलेश्वर का उपन्यास कितने पाकिस्तान समकालीन उपन्यास जगत में मील का पत्थर साबित हुआ है। इस उपन्यास ने हिंदी कथा साहित्य तथा साहित्यकारों को वैश्विक रूप प्रदान किया। कमलेश्वर ने उपन्यास के बने बनाए ढांचे को तोड़ कर लेखकीय अभिव्यक्ति के लिए दूर्लभ द्वार खोलकर एक नया रास्ता दिखाया। ये एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें तथ्यों को काल्पनिकता के धागे में पीरो कर कमेलश्वर ने एक सर्जनात्मक कहानी लिखी है। 2003 में उन्हें इस उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये उपन्यास हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है।



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